उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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17 राय साहब ने गर्म होकर कहा -- अगर इसने देवीजी को हाथ लगाया, तो चाहे मेरी लाश यहीं तड़पने लगे, मैं उससे भिड़ जाऊँगा। आख़िर वह भी आदमी ही तो ...

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