उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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25 'मुझ पर आप जितनी लानत चाहें भेजें; मगर रुपए पर लानत भेजकर आप अपना ही नुक़सान कर रहे हैं। ' 'मैं ऐसी रक़म को हराम समझता हूँ। ' 'आप शरीयत ...

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