प्रेमचंद साहित्यः अलंकार

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अलंकार 18 मार्कस-'हां, सुविज्ञ मित्रो, मैं अद्वैतवादी हूं ! मैं उस ईश्वर को मानता हूं जो न जन्म लेता है, न मरता है, जो अनन्त है, अनादि है, सृष्टि का कर्ता ...

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