कपाल कुंडला--बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय

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:४: स्तूप-शिखर ‘....सविस्मये देखिया अदूरे भीषण-दर्शन मूर्ति।’ —मेघनाद वध। जब नवकुमार की नींद खुली, तो उस समय भयानक रात थी। उन्हें आश्वर्य हुआ कि अभी तक उन्हें शेर-बाघ ने क्यों नहीं ...

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