कपाल कुंडला--बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय

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:५: अपने महल में जनम अवधि हम रूप निहारनु नयन न तिरपित भेल। सोई मधुर बोल श्रवणहि सुननु श्रुतिपथे परस न गेल॥ कत मधुयामिनी रभसे गोंयाइनु न बुझनु कैछन केल। लाख-लाख ...

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