प्रेमचंद साहित्यः अलंकार

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2 पापनाशी जब अपनी कुटी में सावधान होकर बैठा तो विचार करने लगा-अन्त में मैं अपने आनन्द और शान्ति के उद्दिष्ट स्थान पर पहुंच गया। मैं अपने सन्टोष से सुरक्षित ग़ ...

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