कपाल कुंडला--बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय

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९: प्रेत भूमि में “वपुषा करणोज्झितेन सा निपतन्ती पतिमप्यपातयत्। ननु तैलनिषेकविन्दुना सह दीप्तार्जिरुपैति मेदिनीम्॥” —रघुवंश चन्द्र अस्त हुए। विश्वमंडलपर अन्धकारका पर्दा पड़ गया। कापालिकने जहाँ अपना पूजास्थान बनाया था, वहीं कपालकुडलाको ...

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