उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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माघ के दिन थे। मघावट लगी हुई थी। घटाटोप अँधेरा छाया हुआ था। एक तो जाड़ों की रात, दूसरे माघ की वर्षा। मौत का-सा सन्नाटा छाया हुआ था। अँधेरा तक न ...

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