उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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धनिया तिलमिलाकर बोली -- यह पंच नहीं हैं, राक्षस हैं, पक्के राछस! यह सब हमारी जगह-ज़मीन छीनकर माल मारना चाहते हैं। डाँड़ तो बहाना है। समझाती जाती हूँ; पर तुम्हारी आँखें ...

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