उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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गोदान 'एक सौ बीस मिले; पर सब वहीं लुट गये, धेला भी न बचा। ' धनिया सिर से पाँव तक भस्म हो उठी। मन में ऐसा उद्वेग उठा कि अपना मुँह ...

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