वार्षिक लेखन प्रतियोगिता (प्रकृति की प्रस्तुति)

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हो रहा भयभीत। पर नहीं अनजान । कभी करोना। कभी भूकम्प । कभी मच रहा है तुफान। प्रकृति बदला ले रही है। जान ले रे नादान इन्सान। अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी। नष्ट ...

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