उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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गोदान धनिया ने पटेश्वरी के पाँव पकड़ लिये और रोती हुई बोली -- क्या करूँ लाला, जी नहीं मानता। भगवान् ने सब कुछ हर लिया। मैं सबर कर गयी। अब सबर ...

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