वार्षिक कविता प्रतियोगिता- देशप्रेम

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"देशप्रेम" सोचा है कभी यूं हीं तो नहीं मनता गणतंत्र है... सोचा है कभी यूं हीं तो नहीं आज हम स्वतंत्र हैं... जो देश की आजादी की खातिर अपने प्राण न्योछावर ...

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