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प्रकृति ,, न करो प्रकृति से खिलबाड़, मुफ्त बांटती तुमको सम्पदा अपार, करता ममतामयी बन हम सबको दुलार क्यों करके इसका दोहन तुम इसे द्रवित करते। जो खोया है हमने फिर ...