ब्रह्मानन्द सहोदर कविता ( २ )

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"पढ़ने का हक़ छीन के हमसे  विद्या  को दफ़ना रक्खा  था !  तंतर     जंतर     छूमंतर   से  उसका रूप छिपा रक्खा था !!  पाकर  क़िस्मत के पत्तों ...

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