ब्रह्मानन्द सहोदर कविता (३)

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"अब मज़दूर किसान के बच्चे,  जिनको कहीं दबा रक्खा था !  पढ़-लिखकर वो निकलेंगे सब,  जिनको गधा बना रक्खा था !!  वही    संभालेंगे   सब  ओहदे,  क़लम   और   ...

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