उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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गोदान--मु सन्ध्या हो गयी थी। मालती को औरतें अब तक घेरे हुए थीं। उसकी बातों से जैसे उन्हें तृप्ति न होती थी। कई औरतों ने उससे रात को वहीं रहने का ...

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