मुंशी प्रेमचंद ः गबन

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४८ ... दारोग़ा ने ईर्ष्याको छिपाते हुए कहा, 'यह बात न थी। मैं महज़ आपको छेड़ रहा था।' रमानाथ-'ज़ोहरा रात आई नहीं , ज़रा किसी को भेजकर पता तो लगवाइए, बात ...

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