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क़तरा-क़तरा पिघल रही हैं ज़िन्दगी रेत की तरफ फिसल रही है ज़िन्दगी क्या ही बताएं ख़ैरियत और क्या कैफ़ियत मुख़्तसर समझिये कि बस चल रही है ज़िन्दगी ख्वाहिशें शिकस्ता हैं रोज़-मर्रा ...