प्रेमा--मुंशी प्रेमचंद

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पूर्णा ने महरी को आश्चर्य की ऑंखो से देखा। यही बिल्लो है जो अभी दो घंटे पहले चौआइन और पडाइन से सम्मति करती थी और मुझे बेर-बेर पहनने-ओढ़ने से बर्जा करती ...

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