प्रेमा--मुंशी प्रेमचंद

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... पूर्णा को दुनिया से उठे दो वर्ष बीत गया हैं। सॉँझ का समय हैं। शीतल-सुगंधित चित्त को हर्ष देनेवाली हवा चल रही हैं। सूर्य की विदा होनेवाली किरणें खिड़की से ...

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