रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद

186 Part

198 times read

1 Liked

... नायकराम-वाह, हार क्यों मान लें। सासतरार्थ है कि दिल्लगी। हाँ, ठाकुरदीन कोई जवाब सोच निकालो। ठाकुरदीन-मेरी दूकान पर खड़े हो जाओ, जी खुश हो जाता है। केवड़े और गुलाब की ...

Chapter

×