रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद

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नायकराम-निकलनेवाले को कुछ कहता हूँ। यह देखो, ठाकुरदीन के हाथ में रखे देता हूँ। जगधर-क्या ताकते हो भैरों, ले पड़ो। सूरदास-मैं नहीं लड़ता। नायकराम-सूरदास, देखो, नाम-हँसाई मत कराओ। मर्द होकर लड़ने ...

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