पहचान

1 Part

231 times read

1 Liked

मैं उस पंतग कि तरह हू, जिसकी डोर मालूम नहीं। उड़ती हुई आसमां को छू जाती हू, जैसे किसी की खबर नहीं। अपनी ही राग खोई हुई, एक नई मंजिल बनाने ...

×