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मुझसे हर रोज इम्तेहान दिलाते क्युं हो। तोड़ने है तो फिर अरमान सजाते क्युं हो । जब निगाहों में तेरी मैं हूं अब बागी ठहरा, फिर मुझे रोज इक फरमान सुनाते ...