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कस्ती* जीवन की कस्ती ये अपनी। हो गई बहुत पुरानी है।। धीरे धीरे इस कस्ती में बढता जाता पानी है।। मंजिल अभी दूर हैंऔर मै झंझावत में उलझा हूँ।। कस्ती डगमग ...