रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद

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.. उनकी दशा इस समय उस आदमी की-सी थी, जो अपने मुँह-जोर घोड़े के भाग जाने पर खुश हो। अब हव्यिों के टूटने का भय तो नहीं रहा। मैं घाटे में ...

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