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ग़ज़ल छिटकी थी आसमान में बेताज चांदनी। मदहोश कर रही थी हमें आज चांदनी।। ख़ामोश जमाने की वो गहराई रात थी। बनती गई थी तब मेरी हमराज चांदनी।। बिखरा के रोशनी ...