मुंशी प्रेमचंद ः कर्मभूमि

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... सुखदा ने व्यथित कंठ से कहा-अम्मां, बुरा न मानना आज दादाजी का बर्ताव देखकर मुझे मालूम हो गया कि धनियों को अपना धन कितना प्यारा होता है- कौन जाने कभी ...

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