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कविताःवृद्धावस्था बदलते समय को मैंने देखा है खुद को कृशकाय होते हुए भी देखा है वो भी दिन थे मेरे नवपल्लवित पल्लवों से आच्छादित रहता था मैं मीलों तक बिखरा कर ...