जिन्दगी के साज पर

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ग़ज़ल जो छेड़ी है मैंने जिन्दगी के साज पर कोई क्यूँ रूसवा हुआ है मेरी इक आवाज पर । उड़ चला नीले गगन में कल्पना के पंख धर परिंदे को था ...

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