1 Part
206 times read
5 Liked
ग़ज़ल जो छेड़ी है मैंने जिन्दगी के साज पर कोई क्यूँ रूसवा हुआ है मेरी इक आवाज पर । उड़ चला नीले गगन में कल्पना के पंख धर परिंदे को था ...