75 Part
82 times read
1 Liked
सेवासदन मुंशी प्रेमचंद (भाग-4) 46 सदन को ऐसी ग्लानि हो रही थी, मानों उसने कोई बड़ा पाप किया हो। वह बार-बार अपने शब्दों पर विचार करता और यही निश्चय करता कि ...