गजल

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*रात के गहन अंधेरे में एक बल्ब जलाए बैठा हूँ,* *दिमाग, कागज, कलम और मन सजाए बैठा हूँ,* *काश पसंद आजाएं आपको मेरी कलम से निकले ये लावारिश शब्द,* *बस इसी ...

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