बुलबुल

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कैद में बुलबुल   पिंजरे में फड़फड़ाए !  देखा न आसमान कब से  न सुबह को चेहचाहए !   याद आता  है उस को भी  खुल हवा में जीना !  संग साथी बिछड़े  ...

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