लेखनी कविता -कविता संग्रह निरंजन धन तुम्हरा दरबार

51 Part

193 times read

0 Liked

निरंजन धन तुम्हरा दरबार निरंजन धन तुम्हरो दरबार । जहाँ न तनिक न्याय विचार ।। रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार । धूर-धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।। ...

Chapter

×