प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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... अकस्मात् उन्हें ध्यान आया, कहीं श्रद्धा भी मेरा बहिष्कार न कर रही हो! इन अनुदान भावों का उस पर भी असर न पड़ा हो! फिर तो मेरा जीवन ही नष्ट ...

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