प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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दोनों पण्डे खड़े हो गये और स्वर मिलाकर एक कवित्त पढ़ने लगे। कवित्त क्या था, अपशब्दों का पोथा और अश्लीलता का अविरल प्रवाह था। एक-एक शब्द बेहयायी और बेशर्मी में डूबा ...

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