जमाना पड़ा

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एक ग़ज़ल दर्द को झेल कर, मुस्कुराना पड़ा, तब कहीं जा के अपना ठिकाना पड़ा,, मेरी नज़रों में आया जो सैलाब था, इस ज़माने से उसको छुपाना पड़ा,, मुफलिसी में दिवाली ...

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