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तू चल! ऊँचे ऊँचे से पहाड़ो पे जैसे कोई कंटीली डगर हो चलते हुए बेरहम ठोकरों से लहूलुहान कदम अगर हो। उठते-सम्भलते फिर गिर-गिराके बढ़ना है आगे को इन आसमाँ कितने ...