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गज़ल बैठे हैं शहर में कई, अरमान के कातिल। ढाने लगे हैं जुल्म भी, पहचान के कातिल।। क्या नाम बताएं भला हम आपको साहिब। अपने ही बने हैं मेरी, मुस्कान के ...