प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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... इस तिरस्कार से राय साहब कुछ धीमे पड़ गये। लज्जित हो कर बोले, हाँ सम्भव है, इसीलिए कि अब मैं बूढा हुआ। कुछ का कुछ देखता हूँ, कुछ का कुछ ...

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