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तुम्हारा प्रत्येक शब्द मुझे करता गया निःशब्द झरते रहे नयनों से अश्रु मैं रह गई स्तब्ध सुन कर तुम्हारी व्यथा कथा लगा ये कैसा है प्रारब्ध हाय रे मानव की नियति ...