प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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... विद्या गला छुड़ा कर अलग खड़ी हो गयी और रुखाई से बोली–  खत लिख कर क्या करती? यहाँ किसे फुरसत थी कि मुझे लेने जाता। दामोदर महाराज के साथ चली ...

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