प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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... गायत्री खिड़की की ओर ताक रही थी, यहाँ तक कि उसकी दृष्टि से खिड़की भी लुप्त हो गयी। उसके अन्तःकरण से पश्चात्ताप और ग्लानि की लहरें उठ-उठ कर कंठ तक ...

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