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बचपन से हमें सिखलाया जाता जितनी चादर हो फैलाना उतने पैर धूमिल कर रिश्तों की गरिमा भूल कर ये सीख, बढा़ रहें हैं बैर सुख में सब मिल खुशियां मनाते दुख ...