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दिनकर की आभा लिये मुस्कुराती नील सुमन उठने लगी बसंत बयार संग कोकिल है मगन/१/ हर रूत हिय को हरती खिल महके वन उपवन देख भ्रमर का मन डोले प्रकृति करे ...