सुलगती वो नार इक कच्चे कोयले सी।

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सुलगती रही सदा नारी,  कच्चे कोयले सी , देकर  उष्मा अपनी  सौदर्य  व देह की भी, मोल तब भी न कोई  पाया, खो गई  हौले सी, सुलगती गई  वो तो नारी, ...

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