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मैं यहां हूँ तुम कहाँ हो रात का सागर है फैला चांद बैठा है अकेला कुमुदिनी से शांत मन को चांदनी करती है मैला। मैं तुम्हें कैसे जताऊं ये व्यथा कैसे ...