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“गुनाह-ए-मोहब्बत” क्यू भीड़ में भी लगे तनहा सा, सब कुछ होकर भी लगे अधूरा सा । है चारों तरफ़ शोर मेरे, मगर , तरसे दिल तुझे ही सुनने को । ...