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🌹🌹🌹🌹 ग़ज़ल 🌹🌹🌹🌹 अ़दना हो या के आ़ली दरबारे मुस्तुफ़ा में। बनती है सबकी बिगड़ी दरबारे मुस्तुफ़ा में। मज़हब हो कोई सा भी मसलक हो कोई सा भी। मिलती है सबको ...